विचित्र आवाज़ें विचित्र आवाज़ें
इस कविता का शीर्षक “सोचता हूँ प्रेमगीत लिखूं” ही सबसे पहले हाथ लगा लेकिन मैं इस पंक्ति को लेकर उलझता... इस कविता का शीर्षक “सोचता हूँ प्रेमगीत लिखूं” ही सबसे पहले हाथ लगा लेकिन मैं इस ...
पहेली क्या है? शब्दों की जब होड़ मचे, चित्र-विचित्र सा रूप रचे, अनजाने सा प्रतीत करे, उत्तर की ख... पहेली क्या है? शब्दों की जब होड़ मचे, चित्र-विचित्र सा रूप रचे, अनजाने सा प्र...
आजीवन करते हम संचय रहें, तो सुखमय जीवन रहे आए गम न पास। आजीवन करते हम संचय रहें, तो सुखमय जीवन रहे आए गम न पास।
कानून नामक सख्श भी, विचित्र है, भीड़ का अपना हीं,एक चरित्र है। कानून नामक सख्श भी, विचित्र है, भीड़ का अपना हीं,एक चरित्र है।
जिंदगी की बात ही जनाब अलग है कभी ग़म है , कभी भ्रम तो कभी सुुुुलग है। जिंदगी की बात ही जनाब अलग है कभी ग़म है , कभी भ्रम तो कभी सुुुुलग है।